
भारत और यूरोपीय फ्री ट्रेड एसोसिएशन (EFTA) के बीच हुआ ऐतिहासिक व्यापार एवं आर्थिक साझेदारी (TEPA) समझौता 1 अक्टूबर से लागू हो गया है। यह समझौता सिर्फ आयात-निर्यात शुल्क में रियायतों तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत में अगले 15 वर्षों के भीतर $100 अरब (लगभग 8.3 लाख करोड़ रुपये) का निवेश और 10 लाख रोजगार पैदा करने की बाध्यकारी शर्त के साथ आया है।
यह पहली बार है जब भारत ने किसी व्यापार समझौते में निवेश और रोजगार की गारंटी को शामिल किया है। EFTA समूह में स्विट्जरलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड और लिकटेंस्टीन जैसे विकसित देश शामिल हैं। इस समझौते को 'मेक इन इंडिया' अभियान के लिए एक बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है।
फिक्की (FICCI) की महानिदेशक ज्योति विज के अनुसार, 'यह समझौता भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। टैरिफ रियायतों को निवेश प्रतिबद्धताओं से जोड़कर यह 'मेक इन इंडिया' को सीधे तौर पर मजबूती देगा और भारत को वैश्विक विनिर्माण का हिस्सा बनाएगा।' उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत को अगले 15 वर्षों में अपनी अर्थव्यवस्था को 4 लाख करोड़ डॉलर से 20 लाख करोड़ डॉलर तक ले जाने के लिए निवेश की दर को मौजूदा 30% से बढ़ाकर कम से कम 33-34% करना होगा।
टेपा से मिलने वाला 100 अरब डॉलर का निवेश इस लक्ष्य को हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। विज का मानना है कि भारतीय और EFTA कारोबारियों के बीच दिख रहे उत्साह के मद्देनजर यह निवेश लक्ष्य 15 साल से काफी पहले ही पूरा हो सकता है।
अभी भारत और EFTA देशों के बीच व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में नहीं है। 2024-25 में कुल व्यापार लगभग 24.4 अरब डॉलर का रहा, जिसमें भारत का निर्यात सिर्फ 2 अरब डॉलर था, जबकि आयात 22 अरब डॉलर का था। आयात में सोने की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है। यह नया समझौता इस असंतुलन को दूर करने में मदद करेगा।
इसके तहत EFTA देशों ने भारत से आने वाले 99.6% उत्पादों पर टैरिफ यानी आयात शुल्क खत्म कर दिया है। इससे भारत के कृषि उत्पाद, समुद्री उत्पाद, कॉफी, और इंजीनियरिंग उत्पादों को यूरोपीय बाजारों में बड़ी पहुंच मिलेगी। वहीं, भारत ने भी EFTA देशों के लिए अपने बाजार खोले हैं, लेकिन कृषि जैसे संवेदनशील क्षेत्रों और सोने पर लगने वाले शुल्क पर कोई रियायत नहीं दी है।
यह समझौता सिर्फ वस्तुओं के व्यापार तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह सेवा क्षेत्र में भी नए अवसर पैदा करेगा। समझौते में डिजिटल सेवाओं, व्यापारिक उपस्थिति और पेशेवरों की आवाजाही को आसान बनाने के प्रावधान हैं। खास तौर पर, नर्सिंग, चार्टर्ड अकाउंटेंसी और आर्किटेक्चर जैसे पेशों में आपसी मान्यता समझौतों (MRAs) पर सहमति बनी है। इसका मतलब है कि भारतीय पेशेवरों की डिग्रियों को EFTA देशों में आसानी से मान्यता मिलेगी, जिससे उनके लिए वहां काम करना आसान हो जाएगा।
ज्योति विज बताती हैं कि इस समझौते का एक रणनीतिक महत्व भी है। स्विट्जरलैंड के यूरोपीय संघ (EU) के साथ गहरे संबंध हैं, इसलिए यह भारतीय कंपनियों के लिए पूरे यूरोप के बाजार में विस्तार करने के लिए एक 'प्राकृतिक स्प्रिंगबोर्ड' की तरह काम कर सकता है। यह समझौता ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के साथ चल रही व्यापार वार्ताओं के लिए भी एक बेहतरीन मॉडल साबित हो सकता है, जो भारत को 'विकसित भारत' के लक्ष्य की ओर तेजी से आगे बढ़ाएगा।
Disclaimer: इकनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित फिक्की की महानिदेशक ज्योति विज के लेख पर आधारित।