नई दिल्ली, 27 दिसंबर (PTI): भारत के आर्थिक सुधारों के शिल्पकार, डॉ. मनमोहन सिंह ने 1991 के ऐतिहासिक केंद्रीय बजट को मंजूर करवाने के लिए काफी संघर्ष किया। यह वही बजट था जिसने भारत को सबसे गंभीर वित्तीय संकटों से उबारते हुए नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली सरकार में नए वित्त मंत्री बने मनमोहन सिंह ने इस चुनौती को बड़ी ही कुशलता से संभाला। बजट के बाद आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों के तीखे सवालों का सामना करने से लेकर कांग्रेस पार्टी के नेताओं के असंतोष को शांत करने तक, उन्होंने हर कदम मजबूती से उठाया।
यह बजट न केवल भारत को लगभग दिवालियापन से बचाने में सफल रहा, बल्कि देश को एक उभरती हुई वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करने में भी मददगार साबित हुआ।
मनमोहन सिंह ने 25 जुलाई, 1991 को बजट पेश होने के अगले ही दिन बिना किसी झिझक के प्रेस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया। यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनके बजट का संदेश ठीक तरह से समझा जाए, उन्होंने खुद ही हर सवाल का जवाब दिया।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने अपनी किताब "To the Brink and Back: India's 1991 Story" में लिखा है कि वित्त मंत्री ने अपने बजट को 'इंसानी चेहरे वाला बजट' कहा और उर्वरक, पेट्रोल और एलपीजी की कीमतों में प्रस्तावित बढ़ोतरी का बहुत ही सावधानीपूर्वक बचाव किया।
कांग्रेस पार्टी में मचे असंतोष को भांपते हुए, नरसिम्हा राव ने 1 अगस्त, 1991 को कांग्रेस के संसदीय दल (CPP) की बैठक बुलाई। इस बैठक में राव ने खुद को पीछे रखा और मनमोहन सिंह को नेताओं के गुस्से का सामना अकेले करने दिया। जयराम रमेश ने लिखा है कि मनमोहन सिंह ने अकेले अपने बजट का बचाव किया, और उस दौरान राव ने उनकी कोई मदद नहीं की।
रमेश ने लिखा, "प्रधानमंत्री ने बैठक से दूरी बनाए रखी और मनमोहन सिंह को खुद ही आलोचना का सामना करने दिया।" उन्होंने आगे कहा कि 2 और 3 अगस्त को दो और बैठकें हुईं, जिनमें राव पूरे समय मौजूद रहे।
केवल दो सांसदों - मणिशंकर अय्यर और नाथूराम मिर्धा - ने सिंह के बजट का पूरे दिल से समर्थन किया।
अय्यर ने बजट का समर्थन करते हुए तर्क दिया था कि यह बजट राजीव गांधी की इस धारणा के अनुरूप है कि वित्तीय संकट को टालने के लिए क्या किया जाना चाहिए।
पार्टी के दबाव में, मनमोहन सिंह ने उर्वरक की कीमतों में 40% वृद्धि को घटाकर 30% करने पर सहमति दी, लेकिन एलपीजी और पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि को जस का तस रखा।
राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की 4 और 5 अगस्त, 1991 को दो बार बैठक हुई, जिसमें इस पर चर्चा हुई कि 6 अगस्त को लोकसभा में सिंह क्या बयान देंगे।
रमेश ने अपनी किताब में कहा, "इस बैठक में विधेयक को वापस लेने का विचार छोड़ दिया गया है, जिसकी मांग पिछले कुछ दिनों से की जा रही थी, लेकिन अब इसमें छोटे और सीमांत किसानों के हितों की रक्षा की बात की गई।"
जयराम रमेश के मुताबिक, यह घटना 'राजनीतिक अर्थव्यवस्था का सबसे रचनात्मक उदाहरण' थी। सरकार और पार्टी के बीच ऐसा तालमेल बनाना, जहां दोनों ही विजयी हों, एक आदर्श स्थिति थी।
1991 का यह बजट और इसके बाद का घटनाक्रम न केवल भारत की वित्तीय स्थिरता का आधार बना, बल्कि इसने यह भी दिखाया कि कैसे मुश्किल परिस्थितियों में दूरदर्शिता और दृढ़ता से एक नई दिशा तय की जा सकती है।