
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) से ऊंची पेंशन पाने की उम्मीद रखने वाले लाखों कर्मचारियों के लिए केरल हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने उन कर्मचारियों के पक्ष में फैसला दिया है जो 1 सितंबर, 2014 के बाद रिटायर हुए हैं। ईपीएफओ ने इन कर्मचारियों के हायर पेंशन के आवेदन को यह कहकर खारिज कर दिया था कि उनके एंप्लॉयर ने कुछ महीनों का योगदान थोक में और देर से जमा किया था। कोर्ट ने कहा कि जब ईपीएफओ ने वास्तविक सैलरी पर दिए गए योगदान को स्वीकार कर लिया है, तो उन्हें हायर पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता।
केरल की एक कंपनी के कई कर्मचारियों ने रिटायरमेंट के समय अपनी कर्मचारी पेंशन स्कीम (ईपीएस) के लिए सीलिंग लिमिट के बजाय अपनी वास्तविक सैलरी के आधार पर अंशदान किया था। ये सभी कर्मचारी 2020 से 2022 के बीच यानी 1 सितंबर, 2014 की कट-ऑफ डेट के बाद रिटायर हुए थे। ईपीएफओ ने इन सभी कर्मचारियों और उनके एंप्लॉयर से वास्तविक वेतन पर किए गए सभी अंशदान स्वीकार कर लिए थे।
जब इन कर्मचारियों ने रिटायर होने के बाद हायर पेंशन के लिए आवेदन किया तो ईपीएफओ ने उनके दावे को खारिज कर दिया। ईपीएफओ ने कारण बताया कि एंप्लॉयर ने 2004 से 2008 के बीच के कुछ महीनों का योगदान तय समय पर हर महीने करने के बजाय नवंबर 2006 और मार्च 2008 में थोक में जमा किया था। ईपीएफओ ने कहा कि यह पेमेंट हर महीने के हिसाब से नहीं मिला, इसलिए कर्मचारी हायर पेंशन के योग्य नहीं हैं। इस पर, एंप्लॉयर ने सफाई दी थी कि यह देरी सरकारी मंजूरी और चल रहे कानूनी विवादों के कारण हुई थी।
कर्मचारियों ने ईपीएफओ के इस फैसले को केरल हाई कोर्ट में चुनौती दी और केस जीत लिया। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता कर्मचारियों ने संयुक्त विकल्प का इस्तेमाल किया था और उनके वास्तविक वेतन पर योगदान दिए गए थे, जिसे ईपीएफओ ने स्वीकार भी किया है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि थोक में पैसे जमा करने और मासिक आधार पर विभाजन न करने जैसी तकनीकी कमियों के आधार पर हायर पेंशन के अधिकार को खत्म नहीं किया जा सकता। डी एस में लीगल डिपार्टमेंट के पार्टनर, सुयश श्रीवास्तव ने बताया कि कोर्ट ने कहा कि एक बार जब 'सब्सटेंटिव कंप्लायंस' (बुनियादी अनुपालन) पूरा हो जाता है, तो तकनीकी आपत्तियां मान्य नहीं होतीं।
कानूनी विशेषज्ञों ने केरल हाई कोर्ट के इस फैसले को कर्मचारियों के पक्ष में एक मजबूत कदम बताया है। इनकॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, खेतान एंड कंपनी के पार्टनर अंशुल प्रकाश ने कहा कि यह फैसला इस बात को मजबूत करता है कि ईपीएफओ को फॉर्म (प्रक्रिया) पर नहीं, बल्कि 'सब्सटेंस' (बुनियादी तत्व/तथ्यों) को प्राथमिकता देनी चाहिए।
उनका कहना है कि जब भले ही देर से या एकमुश्त किए गए अंशदान को ईपीएफओ ने स्वीकार कर लिया है तो मामूली प्रशासनिक चूक के आधार पर हायर पेंशन से इनकार नहीं किया जा सकता, खासकर जब प्रक्रिया के पालन में हुई गड़बड़ी का उचित आधार हो।
केरल हाई कोर्ट ने ईपीएफओ के आदेशों को रद्द करते हुए कहा कि कर्मचारी वास्तविक वेतन पर हायर पेंशन पाने के हकदार हैं। कोर्ट ने ईपीएफओ को निर्देश दिया है कि वह एंप्लॉयर से मिले मंथली ब्रेकअप डेटा के आधार पर तीन महीने के भीतर याचिकाकर्ताओं को हायर पेंशन का भुगतान शुरू करे। यह फैसला उन सभी कर्मचारियों के लिए एक बड़ी जीत है जिनके उच्च पेंशन दावे, योगदान जमा करने में हुई तकनीकी या प्रशासनिक देरी के कारण खारिज कर दिए गए थे।