
वर्षों बाद इस बार दीपावाली पर दिल्ली में पटाखे फोड़ने की कानूनी अनुमति मिलने की गुंजाइश बनती दिख रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह दीवाली के मौके पर दिल्ली-एनसीआर में पांच दिन के लिए पटाखे की बिक्री और इसे पटाखे फोड़ने की अनुमति देगा। चीफ जस्टिस बीआर गवई की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि पटाखे फोड़ने की अनुमति दी जाएगी लेकिन रात के कुछ खास समय के बीच ही। सरकार ने प्रस्ताव रखा है कि शर्तों के साथ ही, लेकिन बड़े त्योहारों के अवसर पर पटाखे फोड़ने की अनुमति दी जाए। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।
दरअसल, त्योहारों का मौसम आते ही एक सवाल हर साल दिल्ली-एनसीआर के दरवाजे पर दस्तक देता है- क्या इस बार दिवाली पर पटाखे चलेंगे? यह सवाल इस बार सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर था, जहां माहौल उस वक्त भावुक हो गया जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जजों से एक अनोखी अपील की। उन्होंने कहा, 'मेरे भीतर का बच्चा आपके (न्यायाधीशों के) भीतर बैठे बच्चे को मनाने की कोशिश कर रहा है... बच्चों को दो दिन जश्न मनाने दीजिए।' यह सिर्फ एक कानूनी दलील नहीं, बल्कि उन लाखों लोगों की भावनाओं की आवाज थी जो त्योहारों को पूरी रौनक के साथ मनाना चाहते हैं।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस बीआर गवई ने एक बहुत ही अहम और सीधा सवाल पूछा कि क्या 2018 से लगे पूर्ण प्रतिबंध से दिल्ली-एनसीआर की हवा में कोई सुधार हुआ है? इस पर सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि कोविड लॉकडाउन को छोड़ दें तो प्रदूषण का स्तर लगभग वैसा ही रहा है। इस तर्क ने बहस को एक नई दिशा दे दी। अदालत ने भी माना कि पटाखों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना न तो व्यावहारिक है और न ही आदर्श स्थिति, क्योंकि ऐसे प्रतिबंधों का अक्सर उल्लंघन होता है। इससे यह संकेत मिलता है कि अदालत इस बार कोई बीच का रास्ता निकालने पर विचार कर रही है।
अदालत का रुख साफ था कि वह एक ऐसा समाधान चाहती है जो पर्यावरण की सुरक्षा, लोगों की आजीविका और त्योहार मनाने की परंपरा के बीच एक संतुलन बना सके। चीफ जस्टिस ने कहा कि जब सख्त आदेश दिए जाते हैं, तो वे अक्सर टूट जाते हैं, इसलिए एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है। अदालत ने पटाखा निर्माताओं, पर्यावरणविदों और सरकार, सभी पक्षों की दलीलों को ध्यान से सुना ताकि कोई ऐसा फैसला लिया जा सके जो हर किसी के हित में हो।
केंद्र और एनसीआर राज्यों की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने एक ठोस योजना पेश की। उन्होंने सुझाव दिया कि कुछ शर्तों के साथ सिर्फ ग्रीन पटाखों के निर्माण और बिक्री की अनुमति दी जाए। इन शर्तों में शामिल हैं...
इस मामले का एक और पहलू पटाखा निर्माताओं की दुर्दशा है। उन्होंने दलील दी कि उन्होंने NEERI के फॉर्मूले के आधार पर पर्यावरण-अनुकूल पटाखे बनाने के लिए भारी निवेश किया है, लेकिन इसके बावजूद उन पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है। वहीं, इस मुद्दे पर सियासत भी गरमा गई है। दिल्ली बीजेपी ने आम आदमी पार्टी सरकार पर आरोप लगाया है कि उन्होंने जानबूझकर ऐसा माहौल बनाया ताकि पटाखों पर प्रतिबंध लगे। बीजेपी का कहना है कि कुछ घंटों की आतिशबाजी प्रदूषण का मुख्य कारण नहीं है, बल्कि अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली तत्कालीन 'आप' सरकार की नीयत में खोट थी।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। अब दिल्ली-एनसीआर के लाखों लोगों की नजरें अदालत के अंतिम आदेश पर टिकी हैं। यह फैसला न केवल इस दिवाली की रौनक तय करेगा, बल्कि यह भी दिखाएगा कि पर्यावरण और परंपरा के बीच संतुलन कैसे साधा जा सकता है। तब तक, उम्मीदों और इंतजार का दौर जारी है।