Nobel Prize: क्यों नहीं होती हमें हर गंभीर बीमारी? इसी रहस्य पर मिला तीन वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार

Nobel Prize: नोबेल चिकित्सा पुरस्कार 2025 तीन वैज्ञानिकों-मैरी ब्रुनको, फ्रेड रैमस्डेल और शिमॉन साकागुची को ‘पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस’ पर खोज के लिए मिला। उनकी रिसर्च से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली और ऑटोइम्यून बीमारियों की समझ में बड़ा बदलाव आया है।

Priya Shandilya( विद इनपुट्स फ्रॉम भाषा)
पब्लिश्ड6 Oct 2025, 08:32 PM IST
चिकित्सा नोबेल पुरस्कार की घोषणा, तीन वैज्ञानिकों को मिला सम्मान
चिकित्सा नोबेल पुरस्कार की घोषणा, तीन वैज्ञानिकों को मिला सम्मान(Claudio Bresciani/TT News Agency via AP)(AP))

Nobel Prize: इस साल का नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize 2025) चिकित्सा के क्षेत्र में ‘पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस’ से जुड़ी खोजों के लिए तीन वैज्ञानिकों को दिया गया है। सोमवार को इसकी घोषणा की गई। यह सम्मान मैरी ई. ब्रुनको, फ्रेड रैमस्डेल और शिमॉन साकागुची को दिया गया है, जिनकी रिसर्च ने हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली (immune system) को समझने का तरीका ही बदल दिया।

कौन हैं ये तीनों नोबेल विजेता?

ब्रुनको (64) सिएटल स्थित Institute for Systems Biology में सीनियर प्रोग्राम मैनेजर हैं। 64 वर्षीय रैमस्डेल सैन फ्रांसिस्को की Sonoma Biotherapeutics कंपनी में वैज्ञानिक सलाहकार हैं। वहीं, 74 वर्षीय साकागुची जापान के ओसाका यूनिवर्सिटी के Immunology Frontier Research Centre में प्रोफेसर हैं।

शरीर की सुरक्षा प्रणाली पर बड़ा खुलासा

हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली वायरस, बैक्टीरिया और अन्य हानिकारक तत्वों से शरीर की रक्षा करती है। इसमें टी-कोशिकाएं (T-cells) अहम भूमिका निभाती हैं, जिन्हें यह पहचानने का प्रशिक्षण दिया जाता है कि कौन-सा तत्व शरीर के लिए नुकसानदायक है। अगर कभी ये टी-कोशिकाएं गलती से अपने ही शरीर के अंगों को “दुश्मन” समझ लें, तो ‘ऑटो इम्यून डिजीज’ (Autoimmune disease) हो सकती है। थाइमस (Thymus) नामक अंग में ऐसी गड़बड़ कोशिकाओं को नष्ट कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया को ‘सेंट्रल टॉलरेंस’ कहा जाता है।

नोबेल विजेताओं की खोज ने कैसे बदला नजरिया

इन तीनों वैज्ञानिकों ने बताया कि शरीर में इस सिस्टम को कंट्रोल करने का एक और तरीका भी होता है जिसे पेरीफेरल इम्यून टॉलरेंस कहा जाता है। नोबेल समिति ने बताया कि यह खोज 1995 में शुरू हुई जब साकागुची ने टी कोशिकाओं की एक नई किस्म खोजी, जिसे अब रेगुलेटरी टी-सेल्स या टी--रेग्स कहा जाता है। बाद में, 2001 में ब्रुनको और रैमस्डेल ने FoxP3 नाम के जीन में एक खास म्यूटेशन (mutation) पाया, जो एक दुर्लभ मानव ऑटोइम्यून बीमारी से जुड़ा था।

नई दिशा में खुला इम्यूनोलॉजी का दरवाजा

नोबेल समिति ने कहा कि दो साल बाद, साकागुची ने यह साबित किया कि FoxP3 जीन ही इन T-Regs कोशिकाओं के विकास को नियंत्रित करता है। ये कोशिकाएं शरीर में जरूरत से ज्यादा एक्टिव होने वाली टी कोशिकाओं को शांत करती हैं ताकि शरीर खुद पर हमला न करे।

कैरोलिंस्का संस्थान की रुमेटोलॉजी प्रोफेसर मैरी वारेन-हर्लेनियस ने कहा, “इस रिसर्च ने इम्यूनोलॉजी में एक नया युग शुरू किया है। अब दुनिया भर में वैज्ञानिक T-Regs का इस्तेमाल ऑटोइम्यून डिजीज और कैंसर के इलाज में करने पर काम कर रहे हैं।”

सभी को गंभीर बीमारियां क्यों नहीं होती

नोबेल समिति के अध्यक्ष ओले काम्पे ने कहा, “इन खोजों ने हमें यह समझने में मदद की कि हमारी इम्यून सिस्टम कैसे काम करती है और क्यों ज्यादातर लोगों को गंभीर स्व-प्रतिरक्षी बीमारियां नहीं होतीं।” नोबेल समिति के महासचिव थॉमस पर्लमैन ने बताया कि वह सोमवार सुबह सिर्फ साकागुची से ही संपर्क कर पाए।

आगे किन पुरस्कारों की होगी घोषणा

यह इस साल के नोबेल पुरस्कारों की पहली घोषणा है। मंगलवार को भौतिकी, बुधवार को रसायन विज्ञान और गुरुवार को साहित्य के पुरस्कार दिए जाएंगे। नोबेल शांति पुरस्कार शुक्रवार को जबकि अर्थशास्त्र का नोबेल मेमोरियल पुरस्कार 13 अक्टूबर को घोषित किया जाएगा।

10 दिसंबर को होगा सम्मान समारोह

नोबेल पुरस्कार वितरण समारोह 10 दिसंबर को होगा, जो इन पुरस्कारों की स्थापना करने वाले अल्फ्रेड नोबेल की पुण्यतिथि है। नोबेल एक संपन्न स्वीडिश उद्योगपति और डायनामाइट के आविष्कारक थे, जिनका निधन 1896 में हुआ था।

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