
कांग्रेस नेता राहुल गांधी आए दिन किसी न किसी वजह से चर्चा में रहते हैं। इस बार वो दक्षिण अमेरिकी देश कोलंबिया में दिए गए एक बयान को लेकर सुर्खियों में हैं। वहां एक यूनिवर्सिटी में छात्रों से बातचीत करते हुए राहुल ने आरएसएस और वीर सावरकर पर निशाना साधा, जिसके बाद अब उद्धव गुट ने उन्हें नसीहत दे डाली है।
राहुल गांधी ने कोलंबिया की ईआईए यूनिवर्सिटी में छात्रों को संबोधित करते हुए आरएसएस और वीर सावरकर को लेकर विवादित बयान दे दिया। उन्होंने सीधे तौर पर भाजपा और आरएसएस की विचारधारा को कायरता से जोड़ते हुए कहा कि इन संगठनों की सोच ताकतवरों से बचने और कमजोरों पर हावी होने की है।
राहुल ने विदेश मंत्री एस जयशंकर के 2023 के उस बयान का भी जिक्र किया जिसमें उन्होंने चीन को भारत से 'कहीं ज्यादा शक्तिशाली' बताया था और कहा था कि 'मैं उनसे कैसे लड़ सकता हूं?' राहुल ने इस बयान को उदाहरण बनाते हुए कहा कि यही सोच उस विचारधारा की जड़ में है जिसे भाजपा और आरएसएस आगे बढ़ाते हैं, एक ऐसी सोच जो टकराव से बचती है और ताकत के सामने झुक जाती है।
उन्होंने आगे कहा कि आरएसएस की मानसिकता उन लोगों को निशाना बनाती है जो कमजोर हैं, और जब सामने कोई ताकतवर होता है तो उससे दूरी बना लेती है।
यही नहीं, बल्कि राहुल गांधी ने वीर सावरकर पर भी सवाल उठाए। उन्होंने सावरकर की एक किताब का हवाला देते हुए कहा कि उसमें एक घटना का जिक्र है जहां सावरकर और उनके साथियों ने एक मुस्लिम युवक की पिटाई की और लिखा कि उन्हें इससे बहुत आनंद मिला। राहुल ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा, “अगर पांच लोग मिलकर एक अकेले व्यक्ति को पीटते हैं और इससे उन्हें खुशी मिलती है, तो ये कायरता है।”
राहुल गांधी के इस बयान पर भाजपा और उसके सहयोगियों ने तो तीखी प्रतिक्रिया दी ही, लेकिन अब महाविकास अघाड़ी में शामिल शिवसेना (उद्धव गुट) ने भी उन्हें सार्वजनिक तौर पर टोक दिया है। पार्टी प्रवक्ता आनंद दुबे ने कहा कि राहुल को आरएसएस या सावरकर पर हमला करने के बजाय भाजपा की सत्ता और नीतियों को चुनौती देने पर ध्यान देना चाहिए।
उनका कहना था, “हमें नकारात्मक बयानबाजी से बचना चाहिए। राहुल गांधी को भाजपा के शासन के खिलाफ अपनी लड़ाई पर फोकस करना चाहिए, न कि आरएसएस या सावरकर पर टिप्पणी करने में वक्त गंवाना चाहिए।”
राहुल गांधी का बयान एक बार फिर विचारधारा की बहस को हवा दे गया है। लेकिन सहयोगी दलों की सलाह यही है कि विपक्ष को अगर असरदार बनना है, तो उसे इतिहास की बहसों से निकलकर मौजूदा शासन की नीतियों पर सवाल उठाने होंगे। वरना लड़ाई का फोकस बिखर जाएगा।