
ठंड का मौसम जल्द ही दस्तक देने वाला है। सर्दी आते ही दिल्ली-NCR में प्रदूषण की समस्या शुरू हो जाती है। इस दौरान ऑड-इवेन का राग भी शुरू हो जाता है। आखिर दिल्ली में इतना प्रदूषण क्यों बढ़ रहा है, इसकी मूल वजह पराली जलाना माना जा रहा है। इसबीच सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ सख्त रूख अपनाया है। कोर्ट ने कहा कि कुछ किसानों को जेल भेजने से दूसरों को सबक मिलेगा और पराली जलाने की आदत पर लगाम लगेगी। चीफ जस्टिस ने सरकार से सवाल किया कि सख्त कानूनी कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे। पंजाब सरकार ने बताया कि पराली जलाने की घटनाएं कम हुई हैं।
भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने दोषी किसानों पर आपराधिक मुकदमा चलाने की वकालत की और एक अलग कानून बनाने का भी सुझाव दिया। हालांकि, केंद्र सरकार ने कहा कि उसकी नीति किसानों को जेल में डालने की नहीं, बल्कि उन्हें साथ लेकर चलने की है। बता दें कि पराली नहीं जलाने के लिए केंद्र सरकार की ओर से तमाम कोशिशें की जाती है। इसके लिए भारी भरकम बजट भी खर्च होता है। इसके बावजूद पराली जलाने पर कोई कमी नहीं आई है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर सुनवाई के दौरान कहा कि कुछ लोगों को जेल भेजने से 'सही संदेश जाएगा'। यह देखते हुए कि किसानों का योगदान सभी को भोजन उपलब्ध कराना है, भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने तर्क दिया कि इसका मतलब यह नहीं है कि पर्यावरण की रक्षा नहीं की जा सकती। अगर कुछ लोग सलाखों के पीछे जाएंगे तो इससे सही संदेश जाएगा। आप किसानों के लिए कुछ दंडात्मक प्रावधानों के बारे में क्यों नहीं सोचते... अगर आपका पर्यावरण संरक्षण का सच्चा इरादा है तो फिर पीछे क्यों हट रहे हैं?
मुख्य न्यायाधीश गवई ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से पूछा, "आप पराली जलाने के लिए आपराधिक मुकदमा फिर से क्यों नहीं शुरू करते? अगर कुछ लोग सलाखों के पीछे होंगे, तो इससे सही संदेश जाएगा।" इस पर भाटी ने कहा कि यह काम राज्य सरकारों का है। उन्होंने तर्क दिया कि किसानों पर आपराधिक मुकदमा चलाना व्यावहारिक नहीं होगा।
दिल्ली के पड़ोसी राज्यों पंजाब और हरियाणा में हर साल अक्टूबर और नवंबर में पराली जलाने की घटनाएं सामने आती हैं, जिसकी वजह से दिल्ली की हवा ज़हरीली हो जाती है। किसान पराली को खेतों से हटाने के लिए इसे जला देते हैं, जबकि पराली हटाने का विकल्प विशेष मशीनों का इस्तेमाल होता है। किसानों का तर्क है कि ये विकल्प काफी महंगे हैं। ऐसे में वह इस पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। बता दें कि पराली जलाने की घटनाएं हर साल सामने आती रहती हैं, हालांकि दर्ज मामलों में कमी देखी गई है।