
महाषष्ठी (सप्तमी) दुर्गा पूजा का सातवां दिन है और इसे 29 सितंबर 2025 को मनाया जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार यह अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में आता है। सप्तमी तिथि 28 सितंबर दोपहर 2:27 बजे शुरू होगी और 29 सितंबर शाम 4:31 बजे समाप्त होगी। इसी दिन से दुर्गा पूजा के सबसे महत्वपूर्ण चरण की शुरुआत होती है।
सप्तमी का खास महत्व है क्योंकि इसी दिन से मां दुर्गा और महिषासुर के बीच युद्ध की शुरुआत मानी जाती है। यह युद्ध बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, जो विजयादशमी के दिन समाप्त होता है। सप्तमी पर मां दुर्गा की कालरात्रि रूप में पूजा होती है। भक्त मानते हैं कि इस दिन पूजा करने से भय, नकारात्मकता और जीवन की रुकावटें दूर होती हैं।
महासप्तमी के दिन नवपत्रिका पूजा होती है। इसमें नौ प्रकार के पौधों को एक साथ बांधकर पवित्र जल में स्नान कराया जाता है और उन्हें मां दुर्गा के स्वरूप के रूप में पूजते हैं। इसके अलावा षोडशोपचार पूजा की जाती है, जिसमें मां को फूल, धूप, फल और मिठाइयां अर्पित की जाती हैं। ढाक (ढोल), मंत्रोच्चारण और शोभायात्राएं इस दिन का माहौल भक्तिमय बना देती हैं।
हालांकि, दुर्गा पूजा पूरे भारत में होती है, लेकिन पूर्वी भारत जैसे कि पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा और त्रिपुरा में महासप्तमी का विशेष महत्व है। यहां भव्य पंडाल, मां की प्रतिमाएं, सजावट और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से वातावरण जीवंत हो उठता है।
लोग परिवार और समुदाय के साथ मिलकर पूजा, भोग और पारंपरिक भोज का आनंद लेते हैं। देशभर में भक्त उपवास रखते हैं, मंत्रजप करते हैं और शुभ रंगों के वस्त्र पहनते हैं।
महासप्तमी हमें सिखाती है कि साहस और आंतरिक शक्ति से नकारात्मकता को हराया जा सकता है। यह सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि सकारात्मकता, विश्वास और शक्ति का उत्सव है।
(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी सिर्फ धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है। मिंट हिंदी इस जानकारी की सटीकता या पुष्टि का दावा नहीं करता। किसी भी उपाय या मान्यता को अपनाने से पहले किसी योग्य विशेषज्ञ से सलाह लेना जरूरी है।)