भारतीय अंतरिक्ष एवं विकास संगठन (ISRO) आज दुनिया की प्रतिष्ठित स्पेस एजेंसियों में गिना जाता है। इसके पीछे जिन महान शख्सियतों की लगन और अपार मेहनत है, उनमें एक डॉ. कृष्णस्वामी कस्तूरीरंगन अनंत यात्रा पर चले गए। उन्होंने 85 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली। आज अगर भारत स्पेस मिशनों में सफलता पर सफलता पा रहा है तो इसकी नींव में डॉ. कस्तूरीरंगन की उच्च कोटि की निष्ठा है जिसके दम पर पीएसएलवी और जीएसलवी जैसे प्रक्षेपण यानों ने भारत को आत्मनिर्भर बना दिया। आज हमारे हाथों में मोबाइल है, आपदा आने से पहले हमें उसका अलर्ट मिल जाता है तो इसके पीछे भी इस महान वैज्ञानिक का विजन है। डॉ. कस्तूरीरंगन के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा, 'उनका दूरदर्शी नेतृत्व और निःस्वार्थ योगदान हमेशा याद किया जाएगा।'
डॉ. कस्तूरीरंगन का एक नहीं, अनेक परिचय है। वो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के शिल्पकार थे। उन्होंने भारत को अंतरिक्ष और शिक्षा के क्षेत्र में वैश्विक मंच पर स्थापित किया। पीएम मोदी ने अपने शोक संदेश में कहा कि डॉ. कस्तूरीरंगन ने एक तरफ इसरो में बहुत कर्मठता के साथ काम किया और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया तो दूसरी तरफ उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति तैयार करने और शिक्षा को अधिक समग्र और भविष्योन्मुखी बनााया। पीएम ने कहा कि डॉ. कस्तूरीरंगन कई युवा वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के लिए एक प्रेरक मार्गदर्शक भी थे। आइए भारत को डॉ. कस्तूरीरंगन के योगदान को याद करते हैं...
डॉ. कस्तूरीरंगन ने 1994 से 2003 तक इसरो के अध्यक्ष के रूप में भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई दिशा दी। उनके नेतृत्व में भारत ने न केवल आत्मनिर्भरता हासिल की, बल्कि विश्व के छह शीर्ष अंतरिक्ष शक्ति वाले देशों में अपनी जगह बनाई। उनके प्रमुख योगदान इस प्रकार हैं...
डॉ. कस्तूरीरंगन के कार्यकाल में ही पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) को पूरी तरह ऑपरेशनल बनाया गया। यह भारत का सबसे भरोसेमंद प्रक्षेपण यान बना, जिसने 53 में से 51 मिशन सफलतापूर्वक पूरे किए। इससे भारत स्वतंत्र रूप से उपग्रहों को ध्रुवीय कक्षा में प्रक्षेपित करने में सक्षम हुआ। दूसरी तरफ, जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी) का पहला सफल परीक्षण भी उनके नेतृत्व में हुआ। जीएसएलवी ने भारी उपग्रहों को भू-स्थिर कक्षा (जियोस्टेशनरी ऑर्बिट) में स्थापित करने की भारत की क्षमता को बढ़ा दिया।
डॉ. कस्तूरीरंगन के मार्गदर्शन में आईआरएस-1सी और आईआरएस-1डी उपग्रह लॉन्च किए गए, जो उस समय दुनिया के सर्वश्रेष्ठ सिविल रिमोट सेंसिंग सैटलाइट माने गए। इनका उपयोग कृषि, आपदा प्रबंधन और शहरी नियोजन में हुआ।
इन्सैट उपग्रहों की दूसरी पीढ़ी को साकार करने और तीसरी पीढ़ी की शुरुआत करने में उनकी भूमिका थी, जिसने टेलीफोनी, प्रसारण और टेलीमेडिसिन को बढ़ावा दिया।
आईआरएस-पी3 और आईआरएस-पी4 जैसे समुद्री अवलोकन उपग्रहों ने पर्यावरण निगरानी और संसाधन प्रबंधन में भारत की क्षमता को विस्तार दिया।
वे भास्कर-1 और 2 जैसे प्रायोगिक पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों और आईआरएस-1ए, भारत के पहले ऑपरेशनल रिमोट सेंसिंग सैटलाइट के परियोजना निदेशक रहे।
डॉ. कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में इसरो की दुनिया में साख एक किफायती और नवोन्मेषी स्पेस टेक्नॉलजी का विकास करने वाले अंतरिक्ष संस्थान की बनी।
इसरो की वाणिज्यिक शाखा एंट्रिक्स के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने आईआरएस डेटा की इंटरनैशनल मार्केटिंग की और इंटेलसैट के साथ इन्सैट ट्रांसपोंडर लीजिंग के लिए अरबों रुपये का कॉन्ट्रैक्ट हासिल किया।
रिमोट सेंसिंग और जीआईएस एप्लिकेशंस में उनके अग्रणी कार्य के लिए उन्हें ब्रॉक मेडल (आईएसपीआरएस) से सम्मानित किया गया।
एक खगोल भौतिकीविद् के रूप में उन्होंने उच्च ऊर्जा एक्स रे और गामा रे खगोल विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया। डॉ. कस्तूरीरंगन ने 200 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित किए और छह पुस्तकें संपादित कीं।
उन्होंने भारत के उच्च ऊर्जा खगोल वेधशाला को परिभाषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
डॉ. कस्तूरीरंगन ने रूस, अमेरिका और फ्रांस के साथ अंतरिक्ष सहयोग को मजबूत किया। संयुक्त राष्ट्र के अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी शिक्षा केंद्र की गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष के रूप में और दिल्ली घोषणा की दिशा में उनकी भूमिका ने भारत की वैश्विक स्थिति को सुदृढ़ किया।
डॉ. कस्तूरीरंगन ने अंतरिक्ष के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी क्रांति लाई। उनकी दूरदृष्टि ने भारत की शिक्षा प्रणाली को आधुनिक और समावेशी बनाया।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 की मसौदा समिति के प्रमुख के रूप में उन्होंने 5+3+3+4 संरचना, लचीली परीक्षाओं और छोटी उम्र में व्यावसायिक शिक्षा की शुरुआत की। यह नीति 21वीं सदी की जरूरतों के अनुरूप समग्र और समावेशी शिक्षा पर केंद्रित है।
सितंबर 2021 में उन्होंने राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचे को विकसित करने के लिए 12 सदस्यीय संचालन समिति का नेतृत्व किया, जो स्कूलों के लिए पाठ्यपुस्तकों, पाठ्यक्रम और शिक्षण प्रथाओं को निर्देशित करता है।
उनकी यह बात कि 'शिक्षा अब वाटरटाइट डिब्बों में नहीं रह सकती' शिक्षा में विविधता और किसी भी विषय को छोड़कर किसी भी विषय में पढ़ने की अनुमति देने पर उनके विश्वास को दर्शाती है।
डॉ. कस्तूरीरंगन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, केंद्रीय राजस्थान विश्वविद्यालय और एनआईआईटी विश्वविद्यालय के चांसलर रहे, जहां उन्होंने उच्च शिक्षा नीतियों को प्रभावित किया।
2004 से 2009 तक राष्ट्रीय उन्नत अध्ययन संस्थान (एनआईएएस) के निदेशक के रूप में उन्होंने अंतर्विषयक अनुसंधान (इंटरडिसिप्लीनरी रिसर्च) को बढ़ावा दिया।
कर्नाटक नॉलेज कमीशन (2008) के अध्यक्ष और कर्नाटक विजन 2020 के सदस्य के रूप में उन्होंने क्षेत्रीय शिक्षा और विकास रणनीतियों को आकार दिया।
नीति और शासन: 2009 से 2014 तक योजना आयोग के सदस्य और 2003 से 2009 तक राज्यसभा सांसद के रूप में उन्होंने विज्ञान, प्रौद्योगिकी और सामाजिक-आर्थिक नीतियों पर सलाह दी, जिसमें परमाणु समझौता और पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी रिपोर्ट शामिल हैं।
पुरस्कार और सम्मान: उन्हें पद्मश्री, पद्म भूषण, और पद्म विभूषण जैसे भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों के साथ-साथ थियोडोर वॉन करमन अवार्ड (2007) और फ्रांस का ऑफिसर ऑफ द लीजन डी’ऑनर जैसे अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए।
मेंटरशिप और विरासत: विक्रम साराभाई जैसे गुरुओं से प्रेरित होकर उन्होंने इसरो में नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा दिया और भविष्य के नेताओं को प्रेरित किया।
डॉ. कस्तूरीरंगन के प्रयासों ने भारत को अंतरिक्ष में आत्मनिर्भर बनाया, जिससे लाखों लोगों के जीवन में बदलाव आया। आज मोबाइल फोन, आपदा की भविष्यवाणी, रिसोर्स मैनेजमेंट जैसे क्षेत्र ने इतनी तरक्की की तो इसमें भारत मां के इस सपूत का बड़ा योगदान है। एनईपी 2020 के माध्यम से उन्होंने भारत की शिक्षा प्रणाली को भविष्य के लिए तैयार किया। विज्ञान, नीति और सामाजिक जरूरतों को जोड़ने की उनकी क्षमता ने उन्हें एक सच्चा दूरदर्शी बनाया।
उनका निधन भारत के लिए अपूरणीय क्षति है, लेकिन उनकी विरासत हमें प्रेरित करती रहेगी।