इजराइल-ईरान में अगर होता है परमाणु युद्ध तो क्या भारत पर होगा असर?

इजराइल ने ईरान की न्यूक्लियर फेसिलिटीज पर हमला कर दिया है, जिसके बाद ईरान ने कड़ा बदला लेने की धमकी दी है। अगर ये लड़ाई न्यूक्लियर जंग में बदलती है, तो क्या भारत जैसे देशों पर न्यूक्लियर रेडिएशन का खतरा होगा? क्या हिरोशिमा-नागासाकी जैसी तबाही दोबारा होगी?

Priya Shandilya
पब्लिश्ड13 Jun 2025, 09:56 PM IST
न्यूक्लियर हमला (सांकेतिक तस्वीर)
न्यूक्लियर हमला (सांकेतिक तस्वीर)

कई बार कुछ हमले सिर्फ एक देश पर नहीं होते, बल्कि उनका असर आस-पास के देशों पर भी पड़ता है। ऐसा ही खतरा इस समय इजराइल ईरान के बीच जारी तनाव के कारण आस-पास के देशों पर मंडराता नजर आ रहा है।

इजराइल ने ईरान पर जोरदार हमला किया है, जिसमें न्यूक्लियर फैसिलिटीज, बैलिस्टिक मिसाइल फैक्ट्रियों और मिलिट्री ठिकानों को निशाना बनाया गया है। इस हमले के बाद न्यूक्लियर वॉर का खतरा गहराता दिख रहा है, जिससे भारत जैसे देशों को भी सतर्क हो जाना चाहिए।

ईरान में न्यूक्लियर फैसिलिटी पर हमला, खतरे की घंटी!

ऑपरेशन राइजिंग लायन के तहत शुक्रवार को इजराइल के करीब 200 फाइटर जेट्स ने ईरान के 100 से ज्यादा ठिकानों पर हमला किया। इसमें नतांज स्थित ईरान की प्रमुख यूरेनियम संवर्धन साइट भी शामिल है। ईरान ने इस हमले को 'एक खतरनाक और खूनी अपराध' बताया है और इजराइल से बदला लेने की कसम खाई है।

नुकसान से इनकार, लेकिन असल असर क्या?

ईरान की एटॉमिक एनर्जी ऑर्गनाइजेशन ने माना है कि नतांज न्यूक्लियर फैसिलिटी को नुकसान हुआ है, लेकिन कोई रेडियोएक्टिव रिसाव या केमिकल कंटेमिनेशन नहीं हुआ है। फिर भी अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने सभी पक्षों से संयम बरतने की अपील की है।

क्या भारत पर भी पड़ेगा असर?

अब सवाल उठता है कि अगर न्यूक्लियर हमला इजराइल-ईरान में होता है, तो भारत पर क्या असर होगा? जवाब है- नहीं, असर नहीं होगा।

न्यूक्लियर ब्लास्ट सिर्फ धमाके और आग तक सीमित नहीं होता, बल्कि रेडियोएक्टिव हवाएं कई सौ किलोमीटर तक असर डाल सकती हैं। हवा की दिशा अगर भारत की तरफ हुई, तो भी रेडिएशन यहां तक पहुंचे इसके चांस बहुत ही कम हैं। पर भारत की आर्थिक स्थिति पर असर पड़ सकता है। खासकर तेल कीमतें, ट्रेड डिसरप्शन और वेस्ट एशिया में भारतीय कामगारों की सुरक्षा एक बड़ी चिंता बन सकती है।

भारत-पाक के तनावों में भी उठ चुका है न्यूक्लियर वॉर का मुद्दा

हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बाद न्यूक्लियर वॉर का खतरा भी जताया गया था। पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत ने ऑपरेशन सिन्दूर लॉन्च कर पाकिस्तान के एयरबेस को निशाना बनाया। उस वक्त भी कई रिपोर्ट्स में न्यूक्लियर हमले की संभावना जताई गई थी।

चेर्नोबिल हादसे में कहां तक हुआ था असर?

1986 में यूक्रेन के चेर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट में हुए भीषण रिसाव ने दुनिया को यह दिखा दिया था कि रेडियोएक्टिव लीक का असर कितनी दूर तक जा सकता है। इस दुर्घटना का असर 1,100 किलोमीटर दूर स्वीडन (हवाई दूरी) तक महसूस किया गया था। इसका मतलब यह है कि अगर कोई बड़ा न्यूक्लियर धमाका होता है, तो असर सीमाओं के पार भी जा सकता है, हालांकि यह हवा की दिशा, मौसम और विस्फोट की ताकत पर निर्भर करेगा।

हिरोशिमा-नागासाकी की तबाही अब भी डराती है

अगर किसी को यह लगता है कि न्यूक्लियर ब्लास्ट का असर सीमित होता है, तो उन्हें जापान के हिरोशिमा और नागासाकी की याद करनी चाहिए। जापान के इन शहरों में 1945 में हुए अमेरिकी हमले में लाखों लोग मारे गए थे और कई सालों तक उसके दुष्प्रभाव झेलने पड़े। आसपास के क्षेत्रों में कैंसर, जन्म दोष और मानसिक बीमारियों के मामले तेजी से बढ़े थे।

आज भी पश्चिम एशिया की अस्थिरता से भारत को खतरा

गौर करने वाली बात यह है कि पश्चिम एशिया से भारत का न केवल तेल और व्यापारिक जुड़ाव है, बल्कि लाखों भारतीय भी वहां काम करते हैं। अगर इजराइल और ईरान में न्यूक्लियर युद्ध होता है, तो भारत को अपने नागरिकों को वापस लाने, तेल कीमतों में उछाल और आर्थिक अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ सकता है।

IAEA की कोशिशें और आने वाला वक्त

इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) के डायरेक्टर जनरल राफेल ग्रोसी ने संयम की अपील करते हुए ईरान की यात्रा की इच्छा जताई है ताकि स्थिति का आंकलन किया जा सके। लेकिन अगर दोनों देश पीछे नहीं हटते, तो इसका असर केवल इजराइल और ईरान तक सीमित नहीं रहेगा।

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