
करवा चौथ हिंदू विवाहित महिलाओं के लिए सबसे पवित्र और लोकप्रिय त्योहारों में से एक है। यह त्योहार प्यार, समर्पण और वैवाहिक रिश्ते की मजबूती का प्रतीक माना जाता है। इस दिन महिलाएं सूर्योदय से लेकर चांद निकलने तक निर्जला व्रत रखती हैं और अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं।
‘करवा’ शब्द मिट्टी के बने बर्तन (घड़ा) को दर्शाता है, जो शांति और समृद्धि का प्रतीक है, जबकि ‘चौथ’ का अर्थ है कृष्ण पक्ष की चौथी तिथि, यानी माह के चौथे दिन रखा जाने वाला व्रत।
करवा चौथ का उद्गम पौराणिक कथाओं और परंपराओं से जुड़ा है। ऐसा माना जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप और व्रत किया था। उनका यह समर्पण, धैर्य और श्रद्धा का भाव आज भी विवाहित महिलाओं को प्रेरित करता है कि वे अपने पति की दीर्घायु और खुशहाल वैवाहिक जीवन के लिए यह व्रत रखें।
यह त्योहार सिर्फ पति-पत्नी के प्रेम का प्रतीक नहीं, बल्कि महिलाओं के आपसी सहयोग और बहनचारे का भी उत्सव है। इस दिन महिलाएं एक साथ सजती-संवरती हैं, पूजा करती हैं, कथा सुनती हैं और एक-दूसरे को शुभकामनाएं देती हैं।
इस साल करवा चौथ शुक्रवार, 10 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार यह कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को पड़ता है। द्रिक पंचांग के मुताबिक, चतुर्थी तिथि 9 अक्टूबर रात 10:54 बजे से शुरू होकर 10 अक्टूबर शाम 7:38 बजे तक रहेगी। क्योंकि करवा चौथ व्रत उदय तिथि के अनुसार रखा जाता है (यानी जो तिथि सूर्योदय के समय होती है), इसलिए व्रत 10 अक्टूबर 2025 को ही रखा जाएगा।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है वीरावती नाम की एक रानी अपने सात भाइयों की इकलौती बहन थी। जब उसने पहली बार करवा चौथ का व्रत रखा, तो दिन भर भूखी-प्यासी रहने से वह बहुत कमजोर हो गई। अपनी बहन की हालत देखकर भाइयों ने चाल चली और पहाड़ी पर दीपक जलाकर चांद जैसा दृश्य बना दिया। वीरावती ने उसे सच्चा चांद समझकर अपना व्रत तोड़ लिया। परिणामस्वरूप उसके पति की मृत्यु हो गई।
यह देखकर वह बहुत दुखी हुई और सच्चे मन से मां पार्वती की पूजा करने लगी। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने उसे वरदान दिया और उसके पति को फिर से जीवित कर दिया। तब से महिलाएं श्रद्धा और विश्वास के साथ करवा चौथ का व्रत रखती हैं, ताकि उनके पति की आयु लंबी हो और जीवन में खुशहाली बनी रहे। यह व्रत न केवल पति-पत्नी के प्रेम का प्रतीक है, बल्कि यह नारी की आस्था, शक्ति और समर्पण का भी प्रतीक है।
करवा चौथ हिंदू विवाहित महिलाओं का एक पवित्र व्रत है, जो अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए रखा जाता है। यह व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं सुबह सूर्योदय से पहले सरगी खाती हैं और फिर पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं। वे न तो पानी पीती हैं और न ही कुछ खाती हैं, जब तक चांद निकल नहीं आता।
इस दिन महिलाएं सज-धजकर करवा चौथ की पूजा करती हैं। पूजा में करवा (मिट्टी का घड़ा), दीपक, चावल, मिठाई और सात सुहाग सामग्री का विशेष महत्व होता है। महिलाएं मिलकर कथा सुनती हैं और मां गौरी एवं भगवान शिव की आराधना करती हैं।
(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी सिर्फ धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है। मिंट हिंदी इस जानकारी की सटीकता या पुष्टि का दावा नहीं करता। किसी भी उपाय या मान्यता को अपनाने से पहले किसी योग्य विशेषज्ञ से सलाह लेना जरूरी है।)