Rama Ekadashi Vrat Katha: रमा एकादशी का व्रत क्यों है खास? जानें व्रत कथा और इसका महत्व

Rama Ekadashi Vrat Katha: आज 17 अक्टूबर 2025 को रमा एकादशी व्रत है। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित यह व्रत मोक्ष और सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला माना जाता है। आइए जानें क्या है रमा एकादशी का महत्व, व्रत कथा, पूजन विधि और पूजा का शुभ मुहूर्त।

Priya Shandilya
अपडेटेड17 Oct 2025, 07:37 AM IST
रमा एकादशी व्रत कथा
रमा एकादशी व्रत कथा

Rama Ekadashi 2025 Vrat katha in hindi: इस साल रमा एकादशी का व्रत शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2025 को है। हिंदू पंचांग के मुताबिक ये व्रत हर साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर आता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का खास महत्व होता है। मान्यता है कि जो भी भक्त इस दिन पूरे नियम और श्रद्धा से व्रत करता है, उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है और जीवन के सभी दुख-दर्द मिट जाते हैं।

रमा एकादशी की तिथि और मुहूर्त (Rama Ekadashi Puja Shubh Muhurat)

एकादशी तिथि की शुरुआत: 16 अक्टूबर सुबह 10:35 बजे

समाप्ति: 17 अक्टूबर सुबह 11:12 बजे

व्रत की तिथि: 17 अक्टूबर (उदयातिथि के अनुसार)

अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:43 बजे से दोपहर 12:29 बजे तक

अमृत काल: सुबह 11:26 बजे से दोपहर 1:07 बजे तक

पारण की तिथि और समय: 18 अक्टूबर सुबह 6:24 से 8:41 बजे तक

रमा एकादशी पूजन विधि (Rama Ekadashi Pujan Vidhi)

सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें और पीले या सफेद वस्त्र पहनें, क्योंकि ये रंग भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को प्रिय हैं। पूजा स्थल पर गंगाजल छिड़ककर शुद्धिकरण करें। फिर दीप जलाकर भगवान विष्णु का पंचामृत से अभिषेक करें और उन्हें चंदन, फूल, तुलसीदल, मेवा और अक्षत अर्पित करें। इसके बाद माता लक्ष्मी की पूजा करें और रमा एकादशी कथा सुनें या पढ़ें।

पूजा के बाद आरती करें और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” या “ॐ लक्ष्म्यै नमः” मंत्र का जप करें। अगले दिन विधि अनुसार ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को दान देकर व्रत का पारण करें।

रमा एकादशी व्रत कथा (Rama Ekadashi Vrat Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार महाराज युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि कार्तिक महीने की एकादशी का क्या महत्व है। भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुराए और बोले, “राजन, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में जो एकादशी पड़ती है, उसे रमा एकादशी कहा जाता है। इस व्रत से मनुष्य के सारे पाप मिट जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

इसकी एक बहुत सुंदर कथा है, सुनो- बहुत समय पहले राजा मुचुकुंद का राज्य था, जो भगवान विष्णु के बड़े भक्त और सत्यप्रिय शासक थे। उनके राज्य में हर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को लोग निर्जला व्रत रखते थे। राजा का नियम था कि इस दिन कोई भी खाना-पीना नहीं करेगा और सभी लोग व्रत का पालन करेंगे।

राजा की बेटी चंद्रभागा की शादी दूसरे राज्य के राजकुमार शोभन से हुई थी। शोभन का शरीर बहुत कमजोर था, लेकिन उसने राजा मुचुकुंद के नियम और भगवान पर विश्वास करते हुए व्रत रखने का निर्णय लिया। दिन भर भूख-प्यास सहने के बाद, द्वादशी तिथि की सुबह पारण से पहले ही शोभन की मृत्यु हो गई। चंद्रभागा बेहद दुखी हुई, लेकिन उसे भगवान पर भरोसा था। भगवान विष्णु ने शोभन की भक्ति देखकर उसे अगले जन्म में मंदराचल पर्वत का राजा बनाया। समय बीतने पर राजा मुचुकुंद मंदराचल आए और अपने दामाद को राजा बन देखा। उन्होंने ये बात चंद्रभागा को बताई। चंद्रभागा यह सुनकर बहुत खुश हुई और फिर उसने भी रमा एकादशी का व्रत किया और उसे भी पुण्य और फल प्राप्त हुआ। अंत में वह अपने पति के साथ फिर से सुखपूर्वक रहने लगी।

क्यों माना जाता है ये व्रत खास

रमा एकादशी सिर्फ व्रत नहीं बल्कि आस्था और भक्ति का पर्व है। इस दिन विष्णु-लक्ष्मी की कृपा से न सिर्फ मनोकामनाएं पूरी होती हैं, बल्कि जीवन में सकारात्मकता और सुख-शांति का संचार होता है।

डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी धार्मिक ग्रंथों, पंचांगों और सामान्य मान्यताओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य सिर्फ आपको जागरूक करना है, मिंट हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है। कृपया कोई निर्णय लेने से पहले अपनी श्रद्धा और विवेक से काम लें।

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