
निर्देशक: सुभाष कपूर
कलाकार: अक्षय कुमार, अरशद वारसी, सौरभ शुक्ला, हुमा कुरैशी, सीमा बिस्वास, अमृता राव और गजराज राव
स्टार रेटिंग: 3/5
अक्षय कुमार और अरशद वारसी स्टारर फिल्म जॉली एलएलबी 3 बड़े पर्दे पर शुक्रवार (19 सितंबर) को रिलीज हो चुकी है। अक्षय और अरशद अभिनीत यह फिल्म इस फ्रेंचायजी की पिछली दो फिल्मों की ही तरह ही अदालत की कहानी है, लेकिन इसमें पिछली फिल्मों के दोनों जॉली आमने-सामने हैं।
फिल्म के तीसरे इनस्टॉलमेंट में जॉली एलएलबी के जगदीश त्यागी उर्फ जॉली (अरशद) और और जॉली एलएलबी टू के जगदीश्वर मिश्रा उर्फ जॉली (अक्षय कुमार) की अदालत में एक दूसरे की दलीलों को काटते दिख रहे हैं।
फिल्म की कहानी मुख्य रूप से एक व्यापारी (गजराज राव) के एक किसान की जमीन हड़पने और उसके बाद की कानूनी लड़ाई पर केंद्रित है। यह फिल्म अदालत के गंभीर वातावरण के स्टीरियोटाइप को तोड़ती है और कानूनी लड़ाई को हल्के फुल्के अंदाज में ऐसे पेश करती है मानो कि यह अपने मोहल्ले में होने वाली लड़ाई हो। जॉली एलएलबी 3 के साथ सौरभ शुक्ला फिर से जज की भूमिका में हैं।
सुभाष कपूर एक बार फिर कोर्टरूम ड्रामा लेकर लौटे हैं। इस बार मामला न तो हिट-एंड-रन का है और न ही फेक एनकाउंटर का। कहानी शुरू होती है राजस्थान के एक किसान की आत्महत्या से, जो ज़मीन खोने के बाद टूट जाता है। फिल्म की कहानी असल में 2011 के उत्तर प्रदेश भूमि अधिग्रहण आंदोलन से जुड़ी है, और जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, बड़ा रूप ले लेती है।
कहानी के बीचों-बीच हैं हरिभाई खेतान (गजराज राव), देश के सबसे अमीर बिज़नेसमैन, जिनका सपना है “बीकानेर से बॉस्टन” तक का टाउनशिप बनाने का। इसी जमीन के केस में दोनों जॉली अरशद वारसी और अक्षय कुमार फंस जाते हैं और फिर कोर्ट में जबरदस्त भिड़ंत होती है।
फिल्म का ट्रीटमेंट पिछले पार्ट जैसा ही है। किरदारों को देखकर तुरंत अपनापन लगता है। पहला हाफ हल्का-फुल्का और सीधा है, लेकिन इंटरवल से पहले का सीन, जो असरदार होना चाहिए था, फीका पड़ जाता है।
दूसरे हाफ में फिल्म पकड़ मज़बूत करती है। यहीं से असली कोर्टरूम ड्रामा और इंसाफ की जंग दिखती है। लेकिन म्यूज़िक निराश करता है—एक भावुक गाना कहानी की रफ्तार धीमी कर देता है।
लिखाई कई जगहों पर मज़ेदार और तीखी है, जिसमें ह्यूमर और रियल-लाइफ़ संदर्भ (जैसे एक बिज़नेसमैन “VM” जो बड़े कर्ज़ों के बाद लंदन भाग गया) तंज़ की तरह चुभते हैं। फिल्म की असली ताकत है इसका स्टारकास्ट। अक्षय कुमार अपने अंदाज़ में मस्ती और कॉमिक टाइमिंग से माहौल बना देते हैं और उनका जोशीला कोर्टरूम भाषण भी असरदार है। अरशद वारसी हमेशा की तरह नैचुरल लगते हैं और अक्षय के साथ उनकी टक्कर देखने में मज़ा आता है।
कमज़ोरी है खलनायक का रोल। गजराज राव बेहतरीन अभिनेता हैं, लेकिन उनका किरदार कई जगह घिसा-पिटा लगता है, जिसकी वजह कमज़ोर लेखन है।सौरभ शुक्ला एक बार फिर जज के रोल में शानदार हैं और साबित करते हैं कि यह फ्रेंचाइज़ी उनसे अधूरी है। सीमा बिस्वास (जानकी राजाराम सोलंकी) अपनी मौजूदगी से असर छोड़ती हैं और राम कपूर वकील के किरदार में दमदार छाप छोड़ते हैं।
महिला किरदारों को ज़्यादा जगह नहीं दी गई। हुमा कुरैशी (जॉली 2 की पत्नी) और अमृता राव (जॉली 1 की पत्नी) सिर्फ़ बैकग्राउंड में दिखाई देती हैं और कहानी में उनका योगदान बेहद कम है। कुल मिलाकर जॉली एलएलबी 3 पहले दो हिस्सों से बेहतर नहीं है, लेकिन इसमें इतना ह्यूमर और दमदार अदाकारी है कि कोर्टरूम ड्रामा का मज़ा बरकरार रहता है।