
Idli Kadai Movie Review: धनुष बतौर अभिनेता और निर्देशक हमेशा ही दिल को छू लेने वाले पारिवारिक ड्रामे बनाने के लिए जाने जाते हैं। 'वेलैयिल्ला पट्टाधारी' से लेकर 'तिरुचित्रंबलम' तक, उनकी कई फिल्में ऐसी हैं जिन्हें बार-बार देखने का मन करता है और जो वीकेंड पर परिवार के साथ देखने के लिए परफेक्ट होती हैं। अब धनुष अपनी चौथी फिल्म कढ़ाई लेकर लौटे हैं, जो एक और इमोशनल ड्रामा का वादा करती है।
मुरुगन (धनुष) बैंकॉक के एक रेस्टोरेंट में काम करता है, लेकिन वह खुश नहीं है। वह मीरा (शलिनी पांडे) से प्यार करता है, जो रेस्टोरेंट के मालिक विष्णुवर्धन (सत्यराज) की बेटी है। विष्णुवर्धन का बेटा अश्विन (अरुण विजय) घमंडी और बिगड़ा हुआ है, जो हमेशा अपनी ताकत दिखाता रहता है। मुरुगन का पिता, सिवनेसन (राजकिरण), शंकरापुरम में एक छोटी इडली दुकान चलाता है, और वही दुकान पूरे गांवकी पहचान है।
सिवनेसन के लिए यह दुकान सिर्फ व्यापार नहीं बल्कि मंदिर जैसी है। वह अपने काम के प्रति इतना सच्चा है कि बिजनेस को बढ़ाने या किसी और को संभालने देने की बात तक नहीं सोचता। मुरुगन कई बार विस्तार करने का सुझाव देता है, लेकिन सिवनेसन मना कर देता है। एक घटना के चलते मुरुगन अपने गांव लौट आता है। इसके बाद की कहानी घर वापसी, अहिंसा और गाँव की सादगी भरी ज़िंदगी की अच्छाई पर आधारित है।
धनुष की फिल्मों में हमेशा से भावनाएं सबसे मजबूत पहलू रही हैं, और इडली कढ़ाई भी इससे अलग नहीं है। फिल्म की शुरुआत थोड़ी कमजोर लगती है, जब मुरुगन का नीरस और मशीन जैसी ज़िंदगी बैंकॉक में दिखाई जाती है।
यहां तक कि एक परफेक्ट बनी बन देखकर भी उसे अपने पिता की बनाई नरम इडलियों की याद आती है। यही यादें उसे बार-बार खींचती हैं। सिवनेसन का इडली और सांभर के बारे में जुनून से बात करना दर्शकों को भी मोह लेता है।
लेकिन फिल्म कहीं-कहीं ज़्यादा मेलोड्रामा में फंस जाती है। गांव की ज़िंदगी को इतना ऊंचा दिखाया गया है कि लगता है गांव में रहने वाले ही सही और ईमानदार हैं, जबकि शहर के लोग लालची और गलत रास्ते पर। दूसरी ओर विष्णुवर्धन और उसका बेटा अश्विन पैसे और ताकत के सहारे हर छोटी-मोटी जीत हासिल करने की कोशिश करते हैं, चाहे इसके लिए गलत काम ही क्यों न करना पड़े। यही दोनों दुनिया का फर्क फिल्म का बड़ा हिस्सा बनता है।
कहानी सुरक्षित दायरे में रहती है और ज़्यादातर घटनाएं पहले से अंदाज़ा लगाने लायक लगती हैं। जैसे एक बॉक्सिंग रिंग वाला सीन जिसमें मुरुगन और अश्विन भिड़ते हैं आपको तुरंत समझ आ जाता है कि इसका बाद में दोबारा ज़िक्र होगा, और वैसा ही होता है। इसी तरह समुथिरकनी वाला ट्रैक भी अनुमानित है। केवल एक किरदार चौंकाता है और वो है पार्थिबन का पुलिस ऑफिसर वाला रोल। स्क्रीन टाइम कम होने के बावजूद वे गहरी छाप छोड़ते हैं।
फिल्म को ऊंचा उठाती है धनुष की बेहतरीन परफॉर्मेंस। नित्या मेनन का रोल सधा हुआ है, जिसमें उन्हें सिर्फ सहारा देने वाली पत्नी की तरह दिखाया गया है, लेकिन वे उसे ईमानदारी से निभाती हैं। धनुष, नित्या और इलवरसु के हल्के-फुल्के हास्य दृश्य फिल्म को देखने लायक बनाते हैं। सत्यराज, राजकिरण और गीता कैलासम जैसे सीनियर कलाकार अपने किरदारों में सच्चाई लाते हैं।
शालिनी पांडे का अभिनय उतना दमदार नहीं लगता, लेकिन मुरुगन से ब्रेकअप के बाद उसका सीधे सामना करने वाला दृश्य काफ़ी असरदार है। जीवी प्रकाश का संगीत अच्छा है, लेकिन इसमें 'तिरुचित्रंबलम' की झलक बहुत दिखती है। कैमरा वर्क (किरण कौशिक) गांव की शांति और रंगत को खूबसूरती से कैद करता है।
अच्छे इरादों और दमदार अभिनय के बावजूद इडली कढ़ाई एक अनुमानित और साधारण फिल्म बनकर रह जाती है। इसमें दिल छूने वाले पल हैं, लेकिन नई ताजगी या सरप्राइज़ की कमी महसूस होती है।