
साउथ फिल्म इंडस्ट्री में एक्टर्स की एक खासियत ये है कि उनका स्क्रीन प्रेज़ेंस जबरदस्त होता है। उनके आते ही पर्दा चमक उठता है। तेलुगु सुपरस्टार पवन कल्याण, जिन्हें उनके फैंस प्यार से पावर स्टार कहते हैं, ऐसे ही अभिनेता हैं जिनकी हरकतें ही पर्दे पर आग लगाने के लिए काफी हैं। उनके फैंस के लिए डायरेक्टर सुजीत की फिल्म ‘दे कॉल हिम ओजी’ एक ऐसा अनुभव है जो उनकी सारी उम्मीदों को पूरा करती है।
फिल्म की शुरुआत 1940 के दशक के जापान से होती है, जहां समुराई गैंग्स पर एक दमदार नैरेशन सुनाई देता है। अंदरूनी लड़ाई के कारण ज़्यादातर गैंग्स खत्म हो जाते हैं, और सिर्फ एक आदमी OG बच निकलता है।
यही ओजस गंभीरा (पवन कल्याण) है। वह सत्य दादा (प्रकाश राज) के साथ एक जहाज में सवार होकर मुंबई आता है। सत्य दादा का सपना है मुंबई में एक पोर्ट यानी बंदरगाह बनाना।
1970 के दशक में कहानी आगे बढ़ती है। सत्य दादा और गीता (श्रीया रेड्डी), मिराजकर (तेज सपारू) और उसके परिवार से भिड़ते हैं। मिराजकर अपने कंटेनर को वापस पाना चाहता है जिसमें कोई रहस्यमयी सामान है। इस दौरान ओजस, जो खुद को सत्य दादा और उनके परिवार का रक्षक कहता है, एक घटना के बाद मुंबई छोड़ देता है। इसके बाद शक्ति संघर्ष शुरू होता है।
सालों बाद मुंबई और सत्य दादा पर बड़ा खतरा मंडराने लगता है। क्या यह स्थिति ओजस गंभीरा को फिर से मुंबई लौटने के लिए मजबूर करेगी? मुंबई छोड़ने के बाद वह कहां रह रहा था? और आखिर खतरा पैदा कौन कर रहा है? यही फिल्म का सस्पेंस है।
डायरेक्टर सुजीत की ‘दे कॉल हिम ओजी’ पूरी तरह से पवन कल्याण और उनकी स्टार पॉवर के नाम समर्पित फिल्म है। फिल्म बिना समय गंवाए सीधा एक्शन में कूद जाती है। पवन कल्याण की धमाकेदार एंट्री तक का बिल्ड-अप आपको पूरी तरह उत्साहित कर देता है।
पहले तीस मिनट लगातार ऊर्जावान और शानदार सीन से भरे हैं। जब पवन कल्याण थमन के जोरदार बैकग्राउंड म्यूज़िक के साथ आते हैं, तो पूरा माहौल मसाला एंटरटेनमेंट से भर उठता है।
पवन का स्क्रीन टाइम कम है और लंबे भाषण भी नहीं हैं, लेकिन उनकी कमी को बेहतरीन एक्शन सीक्वेंस पूरा कर देते हैं। आजकल मसाला फिल्मों की स्टाइल बदल रही है, फिर भी यह फिल्म साबित करती है कि अगर भरोसे के साथ बनाई जाए तो यह जॉनर अब भी सफल हो सकता है।
पहले हाफ में मुंबई का अंडरवर्ल्ड और नया विलेन ओमी भाऊ (इमरान हाशमी) सामने आता है। कहानी थोड़ी अनुमानित है लेकिन रोमांच बना रहता है। हालांकि, फिल्म का दूसरा हाफ और क्लाइमैक्स कमजोर पड़ जाता है। यह साफ है कि फिल्म फैंस के लिए बनाई गई है, इसलिए तर्क-वितर्क (logic) ज्यादा मायने नहीं रखते। लेकिन बच्चों का अपहरण या पत्नी की हत्या जैसे पुराने ट्रॉप्स अब बासी लगते हैं।
फिल्म में खून-खराबा शुरू से ही दिखता है और आगे बढ़ने के साथ और बढ़ता जाता है। पवन कल्याण, स्टाइलिश ओजस गंभीरा के रूप में स्क्रीन पर छा जाते हैं। इमरान हाशमी का किरदार कुछ खास दमदार नहीं लिखा गया है। प्रकाश राज, तेज सपारू, प्रियंका मोहन, श्रीया रेड्डी और बाकी कलाकार पवन कल्याण को अच्छा सहयोग देते हैं।
एक खास ज़िक्र अर्जुन दास का करना होगा, जिनका फ्लैशबैक हिस्सा दूसरे हाफ को संभाले रखता है। एंड क्रेडिट्स के बाद एक सरप्राइज भी है। हालांकि फिल्म में कई खामियां भी हैं जैसे कि टोन की असंगतता, विजुअल इफेक्ट्स और डबिंग की समस्याएं। दूसरा हाफ भावनात्मक जुड़ाव की कमी के कारण लंबा लगने लगता है। OG की बेटी के किडनैप वाले हिस्से जैसे पुराने सीन असरदार नहीं लगते।
इसके बावजूद ओजस गंभीरा के किरदार पर दिया गया ध्यान और प्री-क्लाइमैक्स में जॉनी से जुड़ा ट्विस्ट फिल्म को संभालता है। थमन का संगीत फिल्म को पैसा-वासूल मसाला एंटरटेनर बना देता है। सिनेमैटोग्राफी (रवि के. चंद्रन और मनोज परमहंस) कई सीन्स को खास बनाती है, खासकर पवन कल्याण वाले हाई-ऑक्टेन एक्शन ब्लॉक्स।
‘दे कॉल हिम ओजी’ में दमदार मोमेंट्स हैं जो थिएटर में मज़ा देते हैं। लेकिन कहानी पुराने अंडरवर्ल्ड और गैंगस्टर ड्रामा जैसी ही लगती है। पवन कल्याण की करिश्माई मौजूदगी और जबरदस्त एक्शन ही इस फिल्म को देखने लायक बनाते हैं।