ऐसी क्या परिस्थितियां बनी थीं कि इंदिरा गांधी ने लोकतंत्र का गला ही घोंट दिया? आपातकाल की कहानी जान लीजिए

Emergency and Indira Gandhi: आज से ठीक 50 वर्ष पहले 25 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश पर आपातकाल थोप दिया था। लेकिन उन्हें लोकतंत्र का गला घोंटने की जरूरत क्यों पड़ी? उन दिनों पैदा हुई किन परिस्थितियों की आड़ लेकर इंदिरा ने इमर्जेंसी का ऐलान किया, विस्तार से जानिए।

भाषा
पब्लिश्ड25 Jun 2025, 11:21 AM IST
25 जून, 1975 को इंदिरा गांधी ने देश पर थोपा था आपातकाल (फाइल फोटो)
25 जून, 1975 को इंदिरा गांधी ने देश पर थोपा था आपातकाल (फाइल फोटो)(HT_PRINT)

स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय 25 जून, 1975 की आधी रात को लिखा गया जब आपातकाल की घोषणा की गई। हालांकि, इसकी पटकथा तभी से लिखी जाने लगी थी जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के राय बरेली से निर्वाचन को 12 जून, 1975 को रद्द किया था। गांधी के खिलाफ चुनाव याचिका सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राज नारायण ने दायर की थी, जो रायबरेली से चुनाव हार गए थे।

राज नारायण की याचिका पर हाई कोर्ट का वो फैसला

उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोकसभा सीट से इंदिरा गांधी के हाथों मात खाए राज नारायण ने आरोप लगाया था कि गांधी के चुनाव एजेंट यशपाल कपूर एक सरकारी कर्मचारी हैं और उन्होंने अपने चुनाव संबंधी कार्यों के लिए सरकारी अधिकारियों को तैनात किया था। उच्च न्यायालय के फैसले में गांधी को चुनावी कदाचार का दोषी पाया गया था।

अगर उनमें (इंदिरा गांधी में) तानाशाही रवैया नहीं होता और असुरक्षा की भावना नहीं होती तो वो अदालत के इस फैसले को लोकतांत्रिक तरीके से लेतीं, लेकिन उन्होंने दूसरा रास्ता चुना।- रामबहादुर राय, वरिष्ठ पत्रकार

कोर्ट के फैसले ने पहले से बनते माहौल को गरमा दिया

अदालत के फैसले ने पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के युद्ध के प्रभाव के चलते ऊंची महंगाई, आवश्यक वस्तुओं की कमी और मंद अर्थव्यवस्था के कारण सरकार के खिलाफ पहले से ही जनता में मौजूद असंतोष को और बढ़ा दिया। 1971 के युद्ध के कारण बांग्लादेश का निर्माण हुआ था।

पश्चिम में गुजरात से असहमति के स्वर उठे, जहां मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल के खिलाफ नवनिर्माण आंदोलन जोर पकड़ रहा था। पूर्व में बिहार से भी आवाज बुलंद हुई जहां जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में युवा संगठित हो रहे थे। इंदिरा ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील की और 24 जून, 1975 को उन्हें उच्चतम न्यायालय से सशर्त राहत मिली, जिसके तहत वह प्रधानमंत्री पद पर तो बनी रहीं लेकिन संसद में उनके पास मतदान का अधिकार नहीं बचा।

रामलीला मैदान में जय प्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति का आह्वान

इसके अगले दिन 25 जून को विपक्षी नेताओं ने दिल्ली के रामलीला मैदान में एक विशाल रैली की जो जयप्रकाश नारायण के 'संपूर्ण क्रांति' के आह्वान के साथ समाप्त हुई। रैली में शामिल नेताओं ने पुलिस और सशस्त्र बलों को भी विद्रोह करने को प्रेरित किया था। उन्हें कहा गया कि अगर उनकी अंतरात्मा किसी सरकारी आदेश को गलत माने तो ऐसे आदेशों का पालन वो नहीं करें।

आपातकाल लगाने से पहले इंदिरा ने किनसे ली राय, जानिए

वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने आपातकाल के दिनों को याद करते हुए कहा, 'अगर उनमें (इंदिरा गांधी में) तानाशाही रवैया नहीं होता और असुरक्षा की भावना नहीं होती तो वो अदालत के इस फैसले को लोकतांत्रिक तरीके से लेतीं, लेकिन उन्होंने दूसरा रास्ता चुना।'

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से परेशान इंदिरा गांधी ने पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे जैसे अपने करीबी सहयोगियों से परामर्श करने के बाद राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपातकाल लगाने की सिफारिश की और इसके लिए देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरे का हवाला दिया।

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आपातकाल में क्या-क्या हुआ, जान लीजिए

इसके बाद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं सभा करने के संवैधानिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया, प्रेस पर सेंसरशिप लागू की गई, कार्यपालिका के कार्यों की समीक्षा करने की न्यायपालिका की शक्ति को सीमित कर दिया गया और विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी का आदेश दिया गया।

गिरफ्तार किए गए लोगों में गांधीवादी समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण शामिल थे जिन्होंने 'सम्पूर्ण क्रांति' का आह्वान किया था और आपातकाल से पहले के महीनों में जन रैलियों को संबोधित किया था। उनके अलावा अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मधु दंडवते, नानाजी देशमुख, प्रकाश सिंह बादल, प्रकाश करात, सीताराम येचुरी, एम करुणानिधि, एमके स्टालिन और अनेक राजनीतिक नेता शामिल थे।

जब 'गूंगी गुड़िया' ने बोलने लगी तब...

जनवरी 1966 में ताशकंद में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी पहली बार प्रधानमंत्री बनी थीं। कांग्रेस का एक वर्ग उन्हें 'गूंगी गुड़िया' समझता था लेकिन उन्होंने स्वतंत्र प्रकृत्ति का प्रदर्शन किया जिसके कारण 1969 में कांग्रेस में विभाजन हो गया। इंदिरा गांधी ने अपनी कांग्रेस-आर पार्टी के तहत 1971 के चुनावों में भारी जीत हासिल की। ​​

1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध के बाद उनकी लोकप्रियता जबर्दस्त बढ़ी, लेकिन यह ज्यादा दिन तक नहीं रही क्योंकि 1973-74 में राजनीतिक अशांति और प्रदर्शन आम बात हो गई। इस अशांति के बीच 12 जून, 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला आया और इसमें गांधी को चुनाव प्रचार में विसंगतियों के लिए दोषी पाया गया, जिसके कारण 25 जून की रात को आपातकाल लगा दिया गया।

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सुबह 6 बजे इंदिरा ने बुला ली थी कैबिनेट मीटिंग

लेखक ज्ञान प्रकाश ने अपनी पुस्तक 'इमरजेंसी क्रॉनिकल्स: इंदिरा गांधी एंड डेमोक्रेसीज टर्निंग पॉइंट' में लिखा है, 'प्रधानमंत्री की कैबिनेट की बैठक 26 जून को सुबह 6 बजे हुई। उनके किसी भी वरिष्ठ मंत्री को पहले से इस घोषणा के बारे में पता नहीं था, लेकिन कैबिनेट ने जल्दी और कर्तव्यनिष्ठा से निर्णय को मंजूरी दे दी।'

इंदिरा गांधी ने 26 जून को आकाशवाणी पर राष्ट्र को संबोधित किया और अपनी सरकार के खिलाफ 'गहरी और व्यापक साजिश' का हवाला देते हुए आपातकाल को उचित ठहराया। इंदिरा ने अपने रेडियो संबोधन में कहा, 'राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा कर दी है। घबराने की कोई बात नहीं है। मुझे यकीन है कि आप सभी उस गहरी और व्यापक साजिश से अवगत हैं, जो तब से चल रही है जब से मैंने आम आदमी के लाभ के लिए कुछ प्रगतिशील उपाय शुरू किए हैं।'

आपातकाल में संजय गांधी की मनमानी

उनके बेटे एवं कांग्रेस नेता संजय गांधी के नेतृत्व में चलाए गए कुख्यात नसबंदी अभियान के तहत जनसंख्या नियंत्रण की आड़ में लाखों पुरुषों और महिलाओं, खासकर गरीब और हाशिए पर पड़े समुदायों की जबरन नसबंदी की गई। हालांकि जिस तरह से आपाताकाल अचानक से लगाया गया था वैसे ही इसके हटाने की घोषणा भी हुई। इंदिरा गांधी ने 18 जनवरी, 1977 को चुनाव कराने और राजनीतिक कैदियों को रिहा करने की घोषणा करके सबको हतप्रभ कर दिया।

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