Success Story: कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों...! इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया है मध्य प्रदेश के दिलीप डेहरिया ने। आज दिलीप किसी परिचय के मोहताज नहीं है। दिलीप आज कड़ी मेहनत और मोटिवेशन से एक नया मुकामह हासिल किया है। गांव में रहकर दिलीप ने आने वाली पीढ़ी को बहुत बड़ी प्रेरणा दी है। उनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। मध्य प्रदेश के छिंदवाडा के दिलीप ने हिंदी माध्यम से पढ़ाई की। इसके बाद लोकसेवा आयोग के जरिए अंग्रेजी के सहायक प्रोफेसर की परीक्षा उत्तीर्ण की।
दिलीप के पिता के एल डेहरिया खेती करते हैं। उनकी मां रुखमिनी डेहरिया हाउस वाइफ हैं। उनकी शिक्षा की शुरुआत गांव के सरकारी स्कूल से हुई। प्रोफेसर बनने के लिए उन्होंने कोई कोचिंग नहीं की और न ही कोई ऑनलाइन क्लासेस अटेंड की। सेल्फ स्टडी की बदौलत परीक्षा पास की।
दिलीप के पिता के पास खेती बहुत कम थी। ऐसे में जीवन यापन के लिए गाय-भैंस में रखते थे। दिलीप गाय-भैस चराते थे। वहीं जब टाइम मिला तो खेत की मेड़ पर ही बैठकर पढ़ाई करने लगते थे। दिलीप अपने साथ हमेशा एक कॉपी जरूर रखते थे, ताकि जहां भी टाइम मिले पढ़ाई की जा सके। दिलीप ने 12वीं तक की पढ़ाई गांव में रहकर की है। दिलीप को अंग्रेजी पढ़ने का मौका छठी क्लास से मिला। छठी क्लास में उन्होंने ABCD सीखा। पांचवीं तक उन्हें अंग्रेजी के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी।
ईटीवी में छपी खबर के मुताबिक, 12वीं के बाद दिलीप ने BA में एडमिशन लिया। उनके विषय राजनीति शास्त्र और इतिहास थे। एक दिन कॉलेज में देखा कि अंग्रेजी की क्लास चल रही है। दिलीप को नहीं पता था कि क्या हो रहा है। जब उन्हें पता चला कि अंग्रेजी की क्लास चल रही है तो उन्होंने प्रिंसिपल से अपने विषय चेंज कराने की बात कही। जिसे प्रिंसिपल ने कहा कि आप बहुत लेट हो गए हैं। कवर नहीं कर पाएंगे। इसके बाद भी दिलीप का जुनून कम नहीं हुआ। जब भी अंग्रेजी की क्लास चलती तो क्लास के बाहर बैठकर सुनते रहते। आखिरी में उन्हें अंग्रेजी में दाखिला मिल गया। फिर टर्म में जो परीक्षा हुई, उसमें दिलीप ने टॉप किया।
दिलीप के परिवार की आर्थिक हालत बेहद खराब थी। बीए की पढ़ाई के बाद मां के गहने गिरवी रखकर B.Ed की पढ़ाई पूरी की। फिर वर्ग एक में शिक्षक बन गए। फिर उन्होंने नेट क्वालीफाई किया और अब एमपीपीएससी के जरिए असिस्टेंट प्रोफेसर बन गए हैं।