
जब अक्टूबर-नवंबर का महीना आता है, तो पूरे भारत में रौनक और उत्साह का माहौल दिखाई देने लगता है। बाज़ारों में भीड़ बढ़ जाती है, मिठाइयों की दुकानों पर मीठी खुशबू फैलती है, और घर-घर में साफ-सफाई व सजावट की शुरुआत हो जाती है। सड़कों पर झिलमिलाती रोशनी, रंग-बिरंगी झालरें और खुशियों की चहक दिवाली के आगमन का संकेत देती हैं।
लेकिन हर साल की तरह इस बार भी लोगों में यह उत्सुकता है कि दिवाली 2025 आखिर किस दिन मनाई जाएगी। पंचांगों के अनुसार तिथि और मुहूर्त में थोड़ा अंतर देखने को मिलता है, जिससे कई लोग उलझन में पड़ जाते हैं। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि दिवाली 2025 की सही तिथि, लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त, धार्मिक महत्व, परंपराएं, व्यंजन और पर्यावरण-अनुकूल तरीकों से इस पावन पर्व को कैसे मनाया जा सकता है।
अमावस्या का दिन अंधकार का प्रतीक होता है, और दिवाली इस अंधकार को दूर करने वाली रोशनी का उत्सव है। यह दिन माता लक्ष्मी जी, भगवान गणेश जी और कुबेर देव की पूजा के लिए शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान श्रीराम चौदह वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, और उनके स्वागत में पूरे नगर ने दीप प्रज्वलित किए थे।
दीपों की यह ज्योति ज्ञान, शांति और सकारात्मकता का प्रतीक है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि अंधकार चाहे कितना भी गहरा क्यों न हो, एक दीपक की लौ भी आशा की किरण जगा सकती है। दिवाली अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है जैसे भगवान राम ने रावण का वध कर धर्म की स्थापना की।
भारत के अलग-अलग हिस्सों में दिवाली की अपनी-अपनी परंपराएं हैं:
दिवाली केवल बाहरी रोशनी का नहीं, बल्कि आत्मिक प्रकाश का भी पर्व है। यह हमें सिखाती है कि जीवन में बुरे विचारों, क्रोध और ईर्ष्या के अंधकार को मिटाकर, प्रेम, क्षमा और ज्ञान के दीप जलाएं। यह समय आत्मचिंतन, नये संकल्प और नई शुरुआत का होता है। जैसे दीपक की लौ कभी नहीं डरती अंधकार से, वैसे ही हमें भी अपने जीवन में सत्य और सद्गुण की राह पर अडिग रहना चाहिए।
दिवाली केवल रोशनी का त्योहार नहीं बल्कि यह दिलों को जोड़ने और रिश्तों में नई गर्माहट लाने का अवसर है। जब घर-घर दीपक जलते हैं, तो ऐसा लगता है मानो हर दिल में आशा की लौ जल उठी हो।
यह पर्व हमें सिखाता है कि असली खुशी देने, बांटने और अपने प्रियजनों से पुनः जुड़ने में है। बच्चों के साथ दीये सजाना, बड़ों का आशीर्वाद लेना, और जरूरतमंदों की मदद करना यही सच्चे अर्थों में दिवाली का उत्सव है।
दिवाली की रात अमावस्या होती है, यानी जब आकाश में चांद नहीं दिखाई देता। यह रात हिंदू धर्म में बहुत खास मानी जाती है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान राम 14 साल के वनवास के बाद रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। उनके स्वागत में अयोध्या के लोगों ने पूरे नगर में दीपक जलाए थे। तभी से दिवाली पर दीप जलाने की परंपरा शुरू हुई।
अमावस्या की यह रात हमें सिखाती है कि अंधकार कितना भी गहरा क्यों न हो, अगर हमारे भीतर विश्वास और सकारात्मकता की रोशनी है, तो हम हर बुराई पर विजय पा सकते हैं। दिवाली का पर्व अच्छाई की बुराई पर जीत और प्रकाश की अंधकार पर विजय का प्रतीक है।
(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी सिर्फ धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है। मिंट हिंदी इस जानकारी की सटीकता या पुष्टि का दावा नहीं करता। किसी भी उपाय या मान्यता को अपनाने से पहले किसी योग्य विशेषज्ञ से सलाह लेना जरूरी है।)