
करवा चौथ एक बहुत ही पवित्र और लोकप्रिय हिंदू त्योहार है, जिसे खासतौर पर उत्तर भारत की विवाहित महिलाएं बड़े उत्साह से मनाती हैं। यह दिन प्रार्थना, भक्ति और पति के प्रति गहरे प्रेम को व्यक्त करने का प्रतीक है।
इस दिन महिलाएं सूर्योदय से लेकर चांद निकलने तक कठोर निर्जला व्रत (बिना पानी और भोजन के) रखती हैं और अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। करवा चौथ सिर्फ एक व्रत नहीं, बल्कि यह त्याग, परंपरा और पति-पत्नी के गहरे रिश्ते का प्रतीक है।
द्रिक पंचांग के अनुसार, करवा चौथ हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह दिन संकष्टी चतुर्थी (भगवान गणेश को समर्पित व्रत) के साथ पड़ता है। इस साल करवा चौथ शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा।
करवा चौथ पूजा मुहूर्त शाम 5:58 बजे से 7:11 बजे तक रहेगा। व्रत सुबह 6:08 बजे से शुरू होगा और रात 8:36 बजे तक चलेगा। करवा चौथ के व्रत का समापन जिस चंद्रमा के दर्शन से होता है, वह कृष्णा दशमी को रात 8:36 बजे उदित होगा।
सबसे प्रसिद्ध कहानी रानी वीरवती की है। करवा चौथ के व्रत के दौरान वह बेहोश हो गई थीं। उनके भाइयों ने उन्हें छल से दिखाया कि चांद निकल आया है। वीरवती ने व्रत तोड़ दिया, जिससे उनके पति की मृत्यु हो गई।
बाद में देवी इंद्राणी की कृपा और अपनी गहरी श्रद्धा के बल पर उन्होंने हर महीने करवा चौथ का व्रत रखा। अंत में वह अपने पति को फिर से जीवन में वापस लाने में सफल हुईं। यह कहानी विश्वास और प्यार की शक्ति को दर्शाती है।
करवा चौथ एक प्राचीन हिंदू त्योहार है जिसे मुख्य रूप से विवाहित महिलाएं उत्तर भारत और नेपाल में मनाती हैं। "करवा" का अर्थ है मिट्टी का घड़ा और "चौथ" का मतलब है पूर्णिमा के बाद आने वाला चौथा दिन। यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है।
इस दिन महिलाएं सूर्योदय से लेकर चांद निकलने तक निर्जला व्रत रखती हैं और अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना करती हैं। यह त्योहार पति-पत्नी के गहरे रिश्ते और प्रेम का प्रतीक माना जाता है।
हिंदू धर्म में करवा चौथ से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं मिलती हैं:
रानी वीरवती की कथा : कहा जाता है कि रानी वीरवती ने अपने पहले करवा चौथ व्रत पर भूख-प्यास से बेहोश हो गईं। उनके भाइयों ने छल करके उन्हें व्रत तोड़ने को मजबूर किया, जिससे उनके पति की मृत्यु हो गई। लेकिन उनकी सच्ची श्रद्धा और भक्ति से उनके पति पुनः जीवित हो गए।
करवा और उनके पति की कथा : करवा नाम की एक स्त्री ने अपने पति को मगरमच्छ से बचाया। उसने सूत के धागे से मगरमच्छ को बाँध दिया और यमराज से प्रार्थना की। उसकी भक्ति से यमराज ने उसके पति की रक्षा की।
महाभारत और द्रौपदी : महाभारत काल में द्रौपदी ने पांडवों की रक्षा और कुशलता के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था। यह व्रत उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर किया था।
करवा चौथ का व्रत काफी सख्त और परंपरागत तरीके से निभाया जाता है:
सरगी : व्रत सूर्योदय से पहले "सरगी" खाने से शुरू होता है। यह भोजन सास अपनी बहू को देती हैं, जिसमें फल, मिठाई और पौष्टिक भोजन शामिल होता है।
निर्जला व्रत : महिलाएं सूर्योदय से लेकर चांदद निकलने तक बिना पानी और भोजन के रहती हैं।
पूजा और कथा : शाम को महिलाएं सज-धजकर एकत्रित होती हैं और करवा चौथ की पूजा करती हैं। वे थालियों का आदान-प्रदान करती हैं और करवा चौथ की कथा सुनती हैं।
चांद देखकर व्रत तोड़ना : जब चांद निकलता है, तब महिलाएं छलनी से चांद को देखती हैं और अर्घ्य अर्पित करती हैं। इसके बाद वे उसी छलनी से अपने पति का चेहरा देखती हैं। पति अपनी पत्नी को पहला पानी और निवाला खिलाकर व्रत तुड़वाते हैं।
सांस्कृतिक पहलू : इस दिन महिलाएं मेहंदी लगाती हैं, नए कपड़े पहनती हैं और उपहारों का आदान-प्रदान करती हैं। आजकल कई पति भी अपनी पत्नियों के साथ यह व्रत रखते हैं ताकि प्रेम और समानता का भाव बना रहे।
(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी सिर्फ धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है। मिंट हिंदी इस जानकारी की सटीकता या पुष्टि का दावा नहीं करता। किसी भी उपाय या मान्यता को अपनाने से पहले किसी योग्य विशेषज्ञ से सलाह लेना जरूरी है।)